मोहन महतो कोइरीके पाँचटा मैथिली कविता

  • कार्तिक १४, २०७७
  • ७८९ पटक पढिएको
  • मोहन महतो कोइरी
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१) शिर्षक : परदेश मे
आबि गेलौ माँए दूर्गा पूजा,
हम छी गे परदेश मे ।
छुटि गेलौ सब पिङ आ झिझिया,
छी हम दु:खक कलेश मे ।।

अबिते होतौ माँए छठि दिवाली,
मोन परैइ यऽ सबटा खाली ।
ढौंसी,भैइलो,साम,चकेबा,
गामके बुढिया दही बाली ।।
कतेक मौजमे जिवैइ छली माँए ?
एक महिनाक पावन बिशेषमे ।

बाँसके कोपरि आ हुक्कालोली,
छुरछुरी,नागिन,चुटपुटिया गोली ।
ठकुवा,भुसुवा,खिर,खजुरिया,
सबटा सोइच माँए काटी अहुरिया ।।
याद बनि माँए रही गेल सबटा,
छुटि गेल अपने देश मे,

सतमीके गे खिरक पातरि,
खरनाके गेइ खिरक भोज ।
दशमीके गेइ जमरा टीका,
मेलाके गेइ मस्ती मौज ।
कि करु माँए किछ नइँ फुराइ यऽ,
छी हम एहन परिवेश मे,
(२०७६/०६/१०)

२) शिर्षक :- जिनगी
देखु तऽ लागत बड़ हसिन छै ।
मुदा ई जिनगी बड़ कठिन छै ।।

अहाँ जिनगी कि जिव रहल छी ?
जाक पुछियौ जिनगी जिल्हा सँऽ,
ई जिनगी सबके बड पसिन छै ।
मुदा जिनगी बड़ कठिन छै ।।

छै कतौउ फूलक सेज,
छै कतौउ कांटक राह,
छै ककरो रत्तीभैइर नइँ चिन्ता,
तऽ छै ककरो बड परवाह ।
ओना तऽ कहबैइ तऽ एक ई मानवरुपि मसिन छै ।
मुदा जिनगी बड़ कठिन छै ।।

छै कतौउ कनकनमे प्रेमक फुहार,
एक दोसर बिच भरपुर प्यार,
छै कतौउ महाभारत,
घरघर बिच द्वन्द,प्रहार,
कतौउ जिनगी बड मिठ तऽ कतौउ बड नमकिन छै ।
मुदा जिनगी बड कठिन छै ।।

३) शिर्षक :- हम
हम हिरो तँ तहिया लगैइ रहियैइ
जहिया माइ हमर,
फटलहबा पैन्ट के,
पछारीसँ चिपी साटि कऽ
खिचखाइच कऽ पेन्हा दैइ रहैइ
आ कहैइ रहैइ आब तु हिरो भगेले
हँ,हम हिरो तहिया लगैइ रहियैइ

हम,हिरो तहिया लगैइ रहियैइ
जहिया दिनभरि गर्दा माटिमे खेलैइत-खेलैइत
करिकवा भ’ क’ अबैइ रहियैइ
आ माइ हमर साँझ मे जबर्जस्ति नहा दैइ रहैइ
हम कान लगैइ रहियैइ
तऽ फेर सऽ फुसल्हा पनिया कऽ
मोटसँ मुरीमे करुवा तेल लगाक
झर्नीसँ झारि दैइ रहैइ
आ कहैइ रहैइ आब हमर बेटा हिरो भगेलैइ
हँ,हम तहिया लगैइ रहियैइ

हमरा अभियो ऊ दिन याद है
जहिया बाबुके हमर किड्नीके अपरेसन भेल रहैइ
हमर बढ़की दिदी,बाबा आ बाबु काठमाडौँमे रहैइ
आ माइ हमर,
एकरा सँ माङि कऽ,ओकरासँ माइङ कऽ
पेटमे दाना आ देहपँ लत्ता जुरबैइ रहैइ
जदि कोनो नयाँ चिजके लागि रुसैइ रहियैइ
हरान करैइ रहियैइ या जिद्द करैइ रहियैइ
तँ उहे पुरान धुरान चिजसँ फुसलाबैइ रहैइ
आ बड़ी सानसँ कहैइ रहैइ
हमर हिरो बेटा कहु हरान केलकैइ यऽ
हमर बेटा तऽ बड बुधियार हइ
हँ,हम हिरो तहिया लगैइ रहियैइ
(२०७६/०९/११)

४) शीर्षक :- किसानके बेटा
हाथ कोदारी माथपर पगरी,
एह तँऽ हमर पहिचान छै ।
छी सुच्चा एक किसानके बेटा,
तँए तँ हमरा गुमान छै ।।

पुछि लिय हेयौउ जाके केकरो,
हमहिँ तँ अन्नक दाता छी ।
खाइछी भले हम नुने रोटी,
मुदा सोचियौ तँ भाग्य विधाता छी ।।

मारि समधानि कोदारीके छह,
बज्जर जमिनके हिला देबैइ ।
लह-लहेतइ तइपर हरियाली अन्न,
बज्जरपनके बिला देबैइ ।।

हर,लगइन,हरलदहा पालो,
युद्धक हात हतियार हमर ।
मेहबुब,प्रेमिका,प्रियतम सबटा,
सजनी,स्नेह आ प्यार हमर ।।

जान कही या गुमान कही,
या आन,वाण आ सान कही ।
मोन कहैए ऐ ठोरसँ हरदम,
हे माटी भगवान कही ।।

नइँ डाक्टर हम नइँ इन्जिनियर,
नइँ मन्त्री नइँ नेता छी ।
सबके अन्न दअ पोसइ बला,
एक सुच्चा किसानके बेटा छी ।।

नइँ कतौउ के नोकर-चाकर,
नइँ केकरो स्टाफ छी ।
अरे स्वतन्त्र छी हम किसानके बेटा,
सबटा अपने-आप छी ।।

परै पानि चाहे बर्खा बुन-बुन,
चाहे नइ परै बुन्दो पानि ।
पसिनेके बल पँ उब्जा लेबइ अन्न,
जखने एकबेर लेबइ ठानि ।।

नइँ बुधि(बुद्धि) कोनो आविस्कारी सन,
नइँ महात्मा प्रचण्ड छै ।
छी सुच्चा एक किसानके बेटा,
अही बातके तऽ घमण्ड छै ।।

५)शिर्षक:-हम
खखरी नइँ हम धान छी ।
मानवक एक प्रमाण छी ।
जनक,बुद्ध छैइ शान जतक,
ओही माटिक सन्तान छी ।

छी हम एक किसानक बेटी,
माता सिताक समान छी ।
सांच कही तऽ अन्नक दाता,
सबके देहक प्राण छी ।

सीता जका छै नाम हमर ।
लता जका छै मान हमर ।
मायक सेहो हम लाड़ली छी ।
अही बातके गुमान हमर ।

नारी छी हम नारी छी ।
काली जकाँ बलशाली छी ।
दु:ख-सु:खक सहयात्री हमहिँ,
सुन्दर,सुशील,व्यहवारी छी ।

चाहे दुनियाँक लेल हम धूल छी ।
चाहे ककरो काइल हम भूल छी ।
छै शान हमरा ऐ बातके,
कि,बाबुक बगियाक फूल छी ।

रचनाकार
मोहन महतो कोइरी
न.पा.गौशाला-४,रजखोर(महोत्तरी)

मोहन कुमार महतो कोइरी जी मैथिली काव्य संसारमे अपन विशिष्ट पहिचान बनाबमे सफल व्यक्तित्व अछि। हिनक कवितामे खेती,किसानी प्रतिक गाैरव भाव सहजे देखल जाइत छै,किएक तँ मोहन जी अपनो खेतीमे सक्रिय छथि। जाहे माटिके बात होइ अथवा साहित्यके खेतीके ! सरल स्वाभावके मोहन जीक कविता सेहो सरलताक सङ्ग लिखाइत अछि।गाैशालामे साहित्यिक अभियान सेहो करैत छथि। गाैशालामे जे साहित्यिक बीज हिनकामे छल,से लहानमे हिनका साहित्यिक वातावरण भेटल। जाहिसँ एखन मोहन जीक श्रृजनशिलता प्रखर भेल। मोहन जी हाल: सिभिल ओभरसियरमे अध्ययनरत छथि।

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