कोशी गण्डक गंगा हिमालय- बिचमे सुन्दर मिथला बिराजे-२।
ऋषिमुनि के तपोभुमी - जनकपुर तिर्थ धाम कहावे ।
मिथलाक नारी परम संस्कारी - देख बरा घुंघट लगावे -२ ।
साहस धैर्य के अपरम्पारी - सीता माइके याद दिलावे ।
जब बरहे अत्याचार नारी शक्ति पर- दुर्गा माइके रुप दिखावे -२।
कोशी गण्डक गंगा हिमालय - बिचमे सुन्दर मिथला बिराजे-२ ।
प्राण प्रदानक अन्न फल पावे- निर्मल जलके नदिया बहावे।
पान मखान स मिथला जाने - हरियर पान मैथिल चबावे-२।
जितिया चौरचन दशैं दिवाली, छठी माइके पुजन मे - घर घर मे खुशिया मनावे -२।
कोशी गण्डक गंगा हिमालय - बिचमे सुन्दर मिथला बिराजे-२।
आइल वसन्तक ऋतुमे मिथलानी सब चोटि फहरावे ।
रंग भंग मे मातल मैथिल - झुम झुम के होलि गीत गावे -२।
बचपन मे दादिमाइ - गीत गाके लोरि सुनावे ।
दुलार करौत दादाजी ने - पुर्वजके ईतिहास पढावे -२।
कोशी गण्डक गंगा हिमालय - बिचमे सुन्दर मिथला बिराजे-२।
जाती धर्मके बात नै करियौ हम सब मैथिल एक समान ।
धोती कुर्ता गम्छा पगरी - दुनियाँ मे हमर पहचान -२ ।
भोज भण्डारा करैछै मैथिल , करैछै घर घरमे अन्न दान।
सोमबारी और मंगलबारी पावन मे मिथलानी भेल परेसान-२।
कोशी गण्डक गंगा हिमालय - बिचमे सुन्दर मिथला बिराजे-२।
प्रेमक रंगमे रंगल छै मैथिल प्रेमक बनल पुजारी ।
प्रेमभाव स नाता जोरे जैसन दशरथजी ने जनकजी के द्वारी ।
घर मे आइल पाहुनके स्वागतमे- साली परहै छै गाली ।
बैठक कुर्सी लगाके साली - खिस्सा देलक पसारी-२ ।
छप्पन व्यञ्जन बनाके साली भोजन परोसे फुलहा थारी ।
मान दान होइय बरा , जब मैथिल गेल ससुराली-२ ।
कोशी गण्डक गंगा हिमालय बिचमे सुन्दर मिथला बिराजे-२।
लेखक: राज कुमार साफी
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