कविता :जाग उठ है किसान (अजय बरबरिया)

  • माघ ७, २०७६
  • ८७१ पटक पढिएको
  • नरेश बर्ब्रिया
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जे हमरे दाना पानी से गल्फर फुलावे २

उहे सामान्त सब हमरे पे करे अत्याचार

किसानक मेहनत के कोइ नै करै सम्मान

किसानक मोल भेल माटी बराबर

हर बहे से खर खाई बकरी खाई अचार

समान्त सोशक सव एनाही किसान पर करै अत्याचार

जाग उठ है किसान अब न कर अबेरा

नै त इ समान्त शोषक सब करतो तोरा पर

बार बार अत्याचार ।अत्याचार

लेखक: अजय कुमार बरबरिया

 

 
 

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